
चुनार गैस सिलेंडरों एजेंसी की काली कमाई: बेखौफ सड़क पर दौड़ता बम, आंख मूंदे लापरवाह प्रशासन
“न नियमों की परवाह, न उपभोक्ताओं की चिंता – सिलेंडर डिलीवरी में चल रहा मौत का सौदा!”
बिना इंश्योरेंस, बिना फिटनेस के सड़कों पर ‘मौत की गाड़ियां’
चुनार, मीरजापुर। चुनार तहसील नगर और उसके आसपास के ग्रामीण इलाकों में रजत इंडियन गैस सर्विस एजेंसी के खिलाफ शिकायतों का अंबार है।सिलेंडरों की सील टूटी मिलती है, गैस का वजन कम होता है, और तो और, सिलेंडर अब पहले के मुकाबले आधे समय में ही खत्म हो जाता है। उपभोक्ताओं को लूटने का ये सिलसिला कोई नया नहीं है।इस तरह की शिकायतों पर पूर्व में रहे चुनार SDM डॉ. विश्राम सिंह ने कार्रवाई कर गैस एजेंसी को सील कर दिया था, लेकिन वही पुरानी लूट और भ्रष्टाचार का खेल आज भी जारी है। यह तो कुछ नहीं चर्चा का विषय यह भी है कि क्षेत्र में होने वाले सिलेंडरों की होम डिलीवरी एक खतरनाक खेल से कम नहीं है। जिन वाहनों में ये सिलेंडर ढोए जा रहे हैं, उनमें न तो फिटनेस है, न इंश्योरेंस, और न ही सुरक्षा उपकरण! यानी सड़क पर दौड़ते ये वाहन गैस सिलेंडर नहीं, बल्कि चलते-फिरते बम हैं, जो कभी भी तबाही मचा सकते हैं। ऐसा इसलिए की वाहनों की स्थिति ऐसी कि किसी भी दिन कोई बड़ा हादसा हो जाए, लेकिन प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है। क्या कोई बताएगा कि जब नियमों के तहत हर गैस डिलीवरी वाहन में फायर सेफ्टी उपकरण और सिलेंडर तौलने के कांटे होने चाहिए, तो यहां ऐसा क्यों नहीं हो रहा? जवाब साफ है,मुनाफा बड़ा, नियम छोटे।
भ्रष्टाचार की शिकायत हो चुका है सील, लेकिन अब फिर वही कहानी!*
रजत इंडियन गैस सर्विस का इतिहास भी कम दिलचस्प नहीं। लगभग2012 में तत्कालीन एसडीएम डॉ. विश्राम सिंह ने जब उपभोक्ताओं की शिकायतों को संज्ञान में लिया, तो छापेमारी में गड़बड़ियां पकड़ में आईं और एजेंसी को तत्काल प्रभाव से सीज कर दिया गया।** लेकिन क्या हुआ? कुछ सालों बाद वही एजेंसी पहले से ज्यादा बेशर्मी के साथ बेखौफ तरीके से धंधा कर रही है! अब सवाल यह उठता है कि अगर एक बार नियम तोड़ने पर कार्रवाई हो सकती थी, तो आज क्यों नहीं? क्या जिम्मेदार अधिकारी अंधे हो गए हैं, या फिर उन्हें चांदी के चम्मच से घुट्टी पिलाई जा रही है या यह कहे कि चमक ने अंधा कर दिया है?
सील टूटी सिलेंडर, जेब कटे उपभोक्ता – घटतौली का काला खेल!
बात करे तो सिर्फ नियम तोड़ना ही नहीं, बल्कि उपभोक्ताओं की जेब भी कट रही है, लोगों का आरोप है कि सिलेंडर की सील टूटी हुई मिलती है, यानी गैस पहले से ही कम कर दी जाती है। पहले जो सिलेंडर दो महीने चलता था, अब एक महीने में ही खत्म हो जाता है। डिलीवरी वाले जबरदस्ती सिलेंडर थमाकर चलते बनते हैं, और अगर कोई वजन तौलने की बात करे, तो बहाने बनाकर टाल देते हैं। या यह कहे कि अंधेर नगरी, चौपट राजा—जो पकड़ा गया वो गरीब ग्राहक, जो बच गया वो गैस माफिया
काले बाजार का सिंडिकेट – गैस एजेंसी से दुकान तक, सिलेंडर में गैस कम, मुनाफा ज्यादा!
आरोप यह भी है कि चुनार बाजार और नगर के आसपास कुछ चुनिंदा दुकानों पर डिलीवरी करने वाले ड्राइवर गैस की काला बाजारी करते हैं। यानी जो गैस आम जनता के घरों में जलनी चाहिए, वो दुकानों के जरिए मुनाफे में बिक रही है!
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस खेल से अनजान है, या फिर उसकी भी हिस्सेदारी है? क्योंकि जब पूरे शहर में लोगों की आंखों के सामने यह खेल चल रहा है, तो अफसरों को क्यों नहीं दिखता?
आग लगने पर कुआं खोदने की तैयारी, पहले हादसा होगा, फिर मुआवजा बंटेगा!
सरकारें उपभोक्ताओं की सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे करती हैं, लेकिन हकीकत यह है कि चुनार की जनता अपनी ही गाढ़ी कमाई से खतरे को खरीद रही है।
अब देखना यह है कि प्रशासन इस गैस माफिया के खिलाफ एक और छापा मारता है या फिर किसी बड़ी अनहोनी का इंतजार करता है!
स्थानियों का कहना है समय रहते अगर नियमों को लागू नहीं किया गया, तो चुनार की गलिया कही किसी खंडहर में तब्दील न हो जाए है। प्रशासन कागजी कार्रवाई में उलझा रहेगा। फिर होगा वही ढर्रा— **नेता आएंगे, मुआवजा बंटेगा, जांच बैठाई जाएगी, और दो महीने बाद सब भूल जाएंगे! लेकिन सवाल यह है कि क्या लोगों की जान इतनी सस्ती है? क्या गैस सिलेंडर की डिलीवरी सिर्फ एक धंधा बनकर रह गई है? और कब तक प्रशासन इस खेल में आंख मूंदे रहेगा? जनता की जान से बड़ा नहीं मुनाफा।